सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुरु रविदास मंदिर को उसी स्थान पर फिर से बनाने के केंद्र के प्रस्ताव को
स्वीकार कर लिया है जहां इसे ध्वस्त किया गया था. अपने पहले के प्रस्ताव को संशोधित करते हुए केंद्र ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि वो मंदिर के निर्माण के एरिया को बढ़ाना चाहता है.
मंदिर पहले 200 वर्ग मीटर
क्षेत्र में था. केंद्र ने इसे बढ़ाकर 400 वर्ग मीटर करने का संशोधित
प्रस्ताव दिया है. दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने तुग़लक़ाबाद इलाक़े में स्थित इस मंदिर को शीर्ष अदालत के आदेश के बाद अगस्त में ध्वस्त किया
था.मंदिर के तोड़े जाने के बाद देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किए गए.
सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अगर रविदास मंदिर के गिराए जाने के बाद हुए विरोध प्रदर्शन में किसी को गिरफ़्तार किया गया है तो उसे तत्काल निजी मुचलके पर छोड़ दिया जाए.
उसने यह भी निर्देश दिया कि मंदिर के निर्माण के लिए एक समिति का गठन किया जाए.
अदालत का यह आदेश हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व मंत्री प्रदीप जैन की दायर याचिका पर दिए गए हैं. उन्होंनें घटनास्थल पर मूर्तियों और तालाब के जीर्णोद्धार की मांग की थी.
दिल्ली कांग्रेस के नेता और पूर्व विधायक राजेश लिलोठिया ने भी सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी जिसमें रविदास मंदिर को गिराए जाने को लेकर डीडीए के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की गई थी.
लिलोठिया ने जो हस्तक्षेप आवेदन दायर किए थे उसमें पवित्र स्थल पर तब तक पूजा करने की अनुमति मांगी गई है जब तक वहां गुरु रविदास मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं हो जाता.
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वहां पेड पार्किंग समेत किसी भी व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं है. साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि मंदिर के पुनर्निर्माण गतिविधियों को देखने के लिए समिति का गठन छह हफ़्ते के भीतर करें.
दिल्ली के तुग़लक़ाबाद में 10 अगस्त की सुबह दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुरु रविदास मंदिर को ढहा दिया था.
इसके बाद दिल्ली और पंजाब समेत समूचे देश में राजनीति गरमा गई.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी और पंजाब की कांग्रेस सरकार समेत भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणी अकाली दल ने भी मंदिर ढहाए जाने की आलोचना की थी. पंजाब के फगवाड़ा, जालंधर, होशियारपुर और कपूरथला में दलित संगठनों ने मंदिर गिराए जाने से नाराज़ होकर बंद का आह्वान किया था.
दिल्ली की केजरीवाल सरकार भी मंदिर को तोड़ने के विरोध में आ गई तो भीम आर्मी के चन्द्रशेखर ने भी दिल्ली आकर इसका विरोध किया था.
लगातार होते विरोध प्रदर्शनों के बीच अदालत में इसे लेकर कई याचिकाएं दायर की गईं.
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